tag:blogger.com,1999:blog-45913450511223684232024-02-08T05:32:38.973-08:00vakyaaKalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-56445564110076644832017-11-29T09:49:00.002-08:002017-11-29T09:49:26.160-08:00चाहती हूँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अधूरे खाबों का अधूरापन पूरा करना चाहती हूँ।<br />
मैं अपने आप की तन्हाइयों से लड़ना चाहती हूँ।<br />
जो पहले कभी नहीं किया, वो करना चाहती हूँ।<br />
मैं अपने आप से बहुत प्यार करना चाहती हूँ।<br />
<br />
खाली खाली क्यों हर पल लगता है मुझे,<br />
अधूरा सा क्यों हर ख्वाब लगता है मुझे,<br />
कुछ मीठी बातों से, कुछ मीठी यादों से<br />
मैं इस खालीपन को भर देना चाहती हूँ।<br />
एक खूबसूरत से अंजाम के साथ<br />
इन ख्वाबो को पूरा कर देना चाहती हूँ।<br />
<br />
पल पल इस डर से उबरना चाहती हूँ ,<br />
मैं खुद से बहुत प्यार करना चाहती हूँ।<br />
<div>
<br /></div>
जो पहले कभी नहीं किया वो करना चाहती हूँ।<br />
मैं अपने आप से बहुत प्यार करना चाहती हूँ।<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-51519684832427775052017-04-08T09:43:00.004-07:002017-04-08T09:44:35.327-07:00अधूरा साथ ........<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फिर से नई राह पर तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी हूँ।<br />
<div>
इक रौशनी की तलाश में निकल पड़ी हूँ। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
नहीं जानती की ये खाब पूरा होगा कि नहीं, फिर भी </div>
<div>
एक धुआं गहराये हुए जल पढ़ी हूँ। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तुमने तो कहा नहीं की वापस आओगे, मुझे अपनी दुनिया में ले जाओगे </div>
<div>
पर फिर भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ </div>
<div>
सांसे चल रही है, पर हर घडी </div>
<div>
मर रही हूँ। </div>
<div>
तुम्हारी तलाश कर रही हूँ। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तुम्हारे सामने भविष्य अंगड़ाई लेता होगा,</div>
<div>
पर मेरी पलके अतीत को ही निहार रही है </div>
<div>
जाने क्यों हर बार कल्पना तक़दीर से हार रही है। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तुम आ जाओ कि सांसे तुम्हे पुकार रही है </div>
<div>
आ जाओ की सांसे जल रही है </div>
<div>
तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी है </div>
<div>
तुम्हारी तलाश में निकल पड़ी है.</div>
<div>
तुम आ जाओ........ </div>
<div>
</div>
<div>
<br /></div>
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-63038494621011675432017-04-08T08:48:00.000-07:002017-04-08T08:48:29.011-07:00ना जाने क्या <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दिन वही रात वही, सिर्फ जिंदगी वो नहीं है। <div>
तक़दीर तो नहीं बदली हमने, कैसे बदल सकते थे </div>
<div>
तुम्हारे होते हुये। </div>
<div>
खुद को इतना बदल चुके थे तुम्हारे लिए </div>
<div>
की कुछ और बदलने की ताकत न जुटा पाए। </div>
<div>
केवल सोचते रह गए </div>
<div>
तक़दीर चली गई सामने से</div>
<div>
और हम ठगे से खड़े रहे </div>
<div>
न जाने किस सोच में </div>
<div>
बह गए सरे खाब </div>
<div>
आंसुओ में नहीं,</div>
<div>
समय के बहाव में </div>
<div>
इतनी तर गई है जिंदगी की अब बिछड़ गए है </div>
<div>
सारे खाब जिंदगी से </div>
<div>
तिनका ढूंढा जो हमने सहारे के लिए </div>
<div>
पाया तो नहीं-----</div>
<div>
अपनी कश्ती भी गवां बैठे गैरो के लिए </div>
<div>
<br /></div>
<div>
</div>
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-18290551929538394032017-04-08T07:48:00.000-07:002017-04-08T07:48:44.764-07:00अधूरे खाब <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सही और गलत से परे भी कुछ हिसाब होते है ,<div>
जो पूरे होते नहीं कभी कुछ ऐसे भी खाब होते है!</div>
<div>
<br /></div>
<div>
खाब ऐसे जो किसी से कभी बाटें नहीं जाते,</div>
<div>
खाब ऐसे जो टूटे तो समेटे भी नहीं जाते !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
फिर भी परछाई के जैसे हर लम्हा साथ होते है,</div>
<div>
होते है हर किसी के ही, कुछ ऐसे इंतखाब (selection) होते है !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
जो पूरे होते नहीं कभी, कुछ ऐसे भी खाब होते है,</div>
<div>
क्योंकि सही और गलत से परे भी कुछ हिसाब होते है,</div>
<div>
जो पूरे होते नहीं कभी, कुछ ऐसे भी खाब होते है !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-89157554609002346592015-11-15T11:32:00.000-08:002015-11-15T11:32:41.752-08:00शाम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज की शाम कुछ कुछ नई सी लगती है, आज ये जिंदगी जिंदगी सी लगती है। <div>
कल की शामों में जो नमी सी थी, आज वो अजनबी सी लगती है। </div>
<div>
जाने हर बात मुस्कुराती सी, जाने हर शै हंसी सी लगती है ,</div>
<div>
जिंदगी जिंदगी सी लगती है , जिंदगी जिंदगी सी लगती है</div>
<div>
<br /></div>
<div>
जो राहें थी हमें बहाती चली, उनसे दूरी भली सी लगती है। </div>
<div>
कल की खुशियों में गम का आलम था, आज हर गम ख़ुशी सी लगती है। </div>
<div>
आज की जिंदगी जिंदगी सी लगती है , आज की शाम कुछ कुछ नई सी लगती है। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
आज पाया है कल्पना ही को, आज हर कल्पना हक़ीक़त भरी सी लगती है। </div>
<div>
आज हर शै हंसी सी लगती है , ये शाम कुछ कुछ नई सी लगती है , </div>
<div>
जिंदगी जिंदगी सी लगती है, जिंदगी जिंदगी सी लगती है।</div>
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-25360351711008265362013-02-22T03:11:00.000-08:002013-02-22T03:11:16.606-08:00तलाश <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक ख्वाब की तलाश है जो सिर्फ मेरा हो।<br />
<br />
अब तक कई ख्वाब देखे, जो हकीक़त भी बन गए ,<br />
लेकिन वो मेरे नहीं थे <br />
<br />
एक ख्वाब की तलाश करती हूँ<br />
जिसकी बाँहों ने मुझे घेर घेरा हो ।<br />
<br />
एक ख्वाब की तलाश है जो मेरा हो ।<br />
<br />
कई नीव पड़ी सपनो की, निर्माण हुआ, कई मंजिलें चढ़ा दी<br />
पर मेरे लिए नहीं, मेरे अपनों के लिए <br />
<br />
मैं तो एक ख्वाब को ढूँढती हूँ जो मेरी कल्पनाओ का सवेरा हो<br />
<br />
एक ख्वाब की तलाश है जो बस मेरा हो ।<br />
<br />
तारे छुप जाये चाहे , पर फिर रात ख़त्म हो, सूरज निकले,<br />
सुबह हो उजाला हो ।<br />
<br />
बस इसी उम्मीद पर नवजीवन की कल्पना करती हूँ<br />
तलाश करती हूँ एक ख्वाब जो हकीक़तों का बसेरा हो<br />
<br />
एक ख्वाब की तलाश करती हूँ, जो मेरा हो, बस मेरा हो<br />
सिर्फ मेरा हो , एक ख्वाब तलाश करती हूँ । <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-53573273777387952562013-02-12T01:05:00.000-08:002013-02-12T01:05:51.703-08:00वर्तमान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शुब्ध है मन चुप सी धड़कन, आज जाने क्या हुआ है<br />
सत्यता संसार की क्यों देख कर सब थम गया है<br />
जग अचल हृदय विकल है, डोलती क्यों ये धरा है<br />
हर छवि में जिंदगी में बस दिखावा लग रहा है <br />
चित्त चंचल था कभी जो, आज गुमसुम खो गया है<br />
आज जाने क्यों सभी कुछ, दिनतामय हो गया है<br />
ना रही अब नारी सीता, राम रावण बन गया है<br />
कृष्ण का अवतार लेकर कंस पांसा फेंकता है<br />
हर कोई छल छंद करके बस तमाशा देखता है<br />
मित्र बनकर आज मानव सीने में कटारें भेदता है!<br />
<br />
<span style="font-size: large;"></span> </div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-16517003373130708932012-01-25T03:28:00.000-08:002012-01-25T03:28:50.031-08:00द्वंध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">आज एक शंखनाद सा गूंजा हृदय में<br />
<span>और हम </span><br />
<span>छटपटा के रह गए.</span><br />
क्या हुआ और क्या होना चाहिए था<br />
<span>इन विचारो में</span><br />
<span>हम कुछ भी न सोच पाए </span><br />
<span>और आखिरकार </span><br />
<span>हम फिर से उसी </span><br />
दोराहे पर ही पहुँच पाए<br />
<span>जहाँ से हमने सफ़र</span><br />
अपना शुरू किया था कभी.......... </div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-63714196333621917062011-11-16T22:57:00.000-08:002011-11-16T22:57:04.921-08:00फिर से ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जाने क्यों हर रिश्ता झूठा लगता है, <br />
सब ठीक है लेकिन कुछ तो टूटा लगता है,<br />
जीवन की हर डोरी सच्ची लगती है,<br />
फिर भी इसको जीना झूठा लगता है,<br />
तुम बिन मुझको हर पल जीना पड़ता है,<br />
हंस कर इस गम को भी पीना पड़ता है,<br />
साथ तो हो तुम मेरे लेकिन क्यों कर मुझको,<br />
हाथ तुम्हारा मुझसे छूटा लगता है....<br />
सब ठीक है लेकिन कुछ तो टूटा लगता है..<br />
कितना अरसा बीत चुका उस मंज़र को,<br />
पर कौन समझ सका है वक़्त के खंज़र को,<br />
रूठ चुके है सारे रिश्ते जैसे अब,<br />
प्यार हमारा जबसे रूठा लगता है...<br />
सब ठीक है लेकिन कुछ तो टूटा लगता है...<br />
जाने क्यों हर रिश्ता झूठा लगता है....<br />
</div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-43205559945347090032011-11-14T04:36:00.000-08:002011-11-14T04:36:36.546-08:00प्रभाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मैं अपने अनुभव के मोतियों को शब्दों के धागों में पिरो कर <br />
कविता का हार लाई हूँ<br />
तुम्हारी आहटों से भरी धुंद में बस तुम्हारे लिए ही<br />
मेरा प्यार लाई हूँ<br />
अपने इस अंतर्मन से, बस तेरे ही भोलेपन से<br />
तुम्हारे मेरे जीवन से, सौंधी सी माटी की खूसबू<br />
<span>अधिक नहीं पर जार जार लाई हूँ</span><br />
<span>मैं अपने अनुभव के .............................</span><br />
तुमसे ही प्रभावित होकर, तुम्हे ही अपना आदर्श कहकर <br />
तेरे कोमल कोमल शब्दों के बाणों से प्रभावित होकर <br />
तेरी कविताओं के उद्देश्य को अपने जीवन में उतार लाई हूँ<br />
अपने अनुभव के मोतियों को.......................................<br />
जैसे तुने मुझको जाना, वैसे ही तुझको समझकर<br />
<span>तेरे ही आदर्शों पर चलकर, कभी बिंदु बिंदु बिखरकर </span><br />
तुझे दुनिया वालो का कहकर बस तेरे ही पथ पर बहकर<br />
तेरे और मेरे अमर प्रेम की, नय्या को पार लाई हूँ<br />
अपने अनुभव के मोतियों को शब्दों के धागे में पिरोकर <br />
कविता का हार लाई हूँ<br />
</div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-10086043727588077722011-11-08T04:04:00.000-08:002011-11-08T04:04:35.030-08:00भावना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;">मैं जानकर इंसान को क्यों जानना चाहती नहीं, </div><div style="text-align: left;">जो सत्य है उस सत्य को क्यों मानना चाहती नहीं</div><div style="text-align: left;">क्यों हर तरफ एक स्वार्थ का वातावरण है बन गया</div><div style="text-align: left;"><span>क्यों मतलबी तूफ़ान में इंसान ऐसा थम गया</span></div><div style="text-align: left;"><span>क्यों आँधियों में झूट की मानव ही बहने है लगा</span></div><div style="text-align: left;"><span><span>जो था कभी जर्रा नहीं वो आज पर्वत हो गया </span></span></div><div style="text-align: left;"><span>ऊँचाई इतनी हो चली वो आसमान में खो गया ...</span></div><div style="text-align: left;">मानव तो बस कहने को है एक शब्द ही ये रह गया</div><div style="text-align: left;">न भावना न प्यार है, अब तो ये सब कुछ खो गया</div><div style="text-align: left;">क्यों मोह को, स्नेह को त्यागा है तुने ये बता</div><div style="text-align: left;"><span>क्यों देव से अब दैव कहलाता है, अब कुछ न छुपा </span></div><div style="text-align: left;"><span><span>क्यों कब तलक ये सिलसिला चलता रहेगा न बढ्हा</span></span></div><div style="text-align: left;"><span><span>अब छोड़ तू जिद्द छोड़ दे क्यों कर रहा दुनिया तबाह</span></span></div><div style="text-align: left;"><span><span><span>अब छोड़ दे जिद्द छोड़ दे क्यों कर रहा दुनिया तबाह....</span></span></span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-60613292432529902382011-11-04T02:01:00.000-07:002011-11-04T02:01:24.570-07:00जाने कब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">कुछ साकार करने की तमन्ना लिए जब जब भी वो राह ढूँढती है,<br />
राह खो जाती है<br />
उसकी जिंदगी में एक और नई अनहोनी हो जाती है<br />
पर वो हताश नहीं होती निराश नहीं होती, <br />
फिर ये कल्पना लड़खड़ाते कदमों पर खुद को उठाती है, <br />
खुद ही खुद को हिम्मत देती है, एक नई राह खोजती है, अपनी जीत सोचती है<br />
कई बार यूँ ही होता है, <br />
कई बार राहें खो जाती है, <br />
कई निराशाएं सामने आती है, <br />
कल्पना को पल पल डरती है, सताती है, <br />
पर कल्पना नहीं डरती, खुद ही खुद से लडती है, <br />
कई लम्हा हकीक़त <span>की शूली पर चढ़ती है, </span><br />
<span>कितनी ही दुविधाओं में पड़ती है, उसकी आत्मा रोती है, करहाती है, </span><br />
<span>पर </span><span>कल्पना फिर भी एक नया सपना सजाती है, </span><br />
<span>नई आशा लिए, </span><br />
<span>उस सपने को पूरा करने की तमन्ना लिए, </span><br />
<span>भगवान् उसे बार बार सजा देता है, </span><br />
<span>उसकी नासमझियों का हिसाब लेता है, </span><br />
<span>पर वो दुखी होकर भी उसे ही सच्चा कहती है, </span><br />
<span>उसके हर फैसले को अच्छा कहती है, </span><br />
<span>एक बार फिर से वो सपना देख रही है, </span><br />
<span></span><span>कुछ समेट रही है, </span><br />
<span>ये सोचकर की अब तो नासमझियों का हिसाब पूरा हो गया होगा,</span><br />
<span>कांच पूरा का पूरा चूरा चूरा हो गया होगा </span><br />
<span>और उसी चूरे से कुछ दीवारें सपनो की फिर से बनाती है, </span><br />
<span>सपनो की एक नई कल्पना सजाती है, </span><br />
<span>फिर से वो नई कल्पना में खो जाती है, खाबों को सजाती है......</span><br />
<span>पर जाने कब इन्हें सच कर पाती है, </span><br />
<span>जाने कब ये कल्पना पूरी हो पाती है ........</span><br />
<span>जाने कब????</span></div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-76520010331807528972011-10-09T11:35:00.000-07:002011-10-09T11:35:22.171-07:00जाने क्यूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
कभी कभी मैं बहुत अकेली हो जाती हूँ, <br />
ना जाने कहाँ किस भंवर में तनहाइयों के साथ<br />
अपने को भी तनहा पाती हूँ!<br />
और तब मैं सोचती हूँ की तनहाइयाँ आखिर मुझे<br />
कब तक सता पाएंगी?<br />
कभी ना कभी शायद ये भी मुझसे <br />
तुम्हारी तरह ही रूठ जाएँगी!<br />
बस तुम्हारे बारे में ही मैं क्या कहूं <br />
मुझसे तो सभी रूठ जाते है<br />
कई पल कई लम्हे जो संजोती हूँ मैं<br />
एक कतार में मुझसे छूट जाते है,<br />
जिसे भी अपना कहती हूँ वो मुझे<br />
बेगाना कर देता है!<br />
मेरी हकीक़त भरी जिंदगी के जज्बातों को<br />
एक अफसाना कर देता है!<br />
शायद तुम सही हो, लेकिन मुझे इस कदर<br />
फिर से अफसाना ना बनाओ<br />
मेरी जज्बातों की महफ़िल को,<br />
एक जलता हुआ शामियाना ना बनाओ!<br />
शायद मैं गलत हूँ लेकिन, तुम्हारी नज़रों में<br />
मुझे जिदगी का एक कोरा पन्ना ना बनाओ,<br />
मैं हसरतों भरी धड़कन हूँ, मुझे तुम्हारे जीवन की अधूरी<br />
तमन्ना ना बनाओ,<br />
अधूरी तमन्ना ना बनाओ.............<br />
<br />
<br /></div>
</div>
Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-50757320895927757962011-09-20T10:28:00.000-07:002011-09-20T10:28:53.851-07:00कांच की दीवार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div closure_uid_2axpah="119" style="text-align: left;">
<div style="text-align: left;">
तकदीर मेरे संग बार बार ये कैसा खेल खेलती है,</div>
<div style="text-align: left;">
एक कांच की दीवार बार बार जाने कैसे कैसे आघात झेलती है,</div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
अतीत में खोई हुई एक परछाई उभर आई थी,</div>
<div style="text-align: left;">
मैंने कई रंगों से उसकी तस्वीर सजाई थी,</div>
<div style="text-align: left;">
कुछ पलों में ही अनगिनत ख्वाब संजो दिए थे, </div>
<div style="text-align: left;">
और सोचा जिंदगी में ख़ुशी हकीक़त बन आयी थी,</div>
<div style="text-align: left;">
फिर पल पल सिर्फ ख्वाब थे, कदम कदम पर मुस्कराहट होटों पर दस्तक देने लगी थी,</div>
<div style="text-align: left;">
आँखों में चमक बिखेरने लगी थी, आत्मविश्वास की नय्या खेने लगी थी,</div>
<div style="text-align: left;">
चारो तरफ सिर्फ फूलों के गलियारे थे, परछाई के संग संग चाँद और सितारे थे,</div>
<div style="text-align: left;">
सारे के सारे अधिकार उन पलों में परछाई पर हमारे थे,</div>
<div style="text-align: left;">
दुनिया में अपनी बड़ी खुशनसीबी का एहसास होता था,</div>
<div style="text-align: left;">
आँखों के सामने अपनी नवीन कल्पनाओं का आकाश होता था,</div>
<div style="text-align: left;">
परछाई की हकीक़त में मोजूदगी का एहसास होता था,</div>
<div style="text-align: left;">
पर वर्तमान फिर से अतीत बन गया,</div>
<div style="text-align: left;">
उभर आयी परछाई फिर से खो गई,</div>
<div style="text-align: left;">
तकदीर फिर से नया खेल खेल गई,</div>
<div style="text-align: left;">
एक बार फिर से कांच की दीवार बहुत बड़ा आघात झेल गई,</div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
पर इस बार कांच की दीवार चूर चूर हो गई,</div>
<div style="text-align: left;">
मैं उस चूरे से खेलने लगी पर नहीं जानती थी की कांच </div>
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के टुकडो से खेला नहीं जाता,अब मैं लहुलुहान हूँ,</div>
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उन टुकड़ों को समेटने की जिद्द है लेकिन मैं लहुलुहान हूँ, </div>
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टुकड़ों बिखर चुके है और मैं लहुलुहान हूँ.</div>
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Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-35175631888373443272011-08-24T02:23:00.000-07:002011-08-24T06:47:14.381-07:00अनभिज्ञ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">इस युग का अदि अंत नहीं मैं जानती हूँ,</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">क्यूँ शुन्य है अनंत नहीं मैं जानती हूँ </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><span closure_uid_ama7fu="135">मैं जानती हूँ बस इतनी सी बात </span></div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><span closure_uid_ama7fu="135">कि </span>आम के एक पेड़ पर बैठा है पंछी </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">एक गिद्ध है आकाश में उस पर लगाये घात</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><br />
</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">क्यूँ ऐसी नीयत हो गई है इंसान कि भी आज</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">मैं सोचती हूँ अक्सर जो था कभी देवता </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">वो बन गया क्यूँ बाज़</div><div closure_uid_ama7fu="113" closure_uid_rv0086="100" style="text-align: left;"><br />
</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><span closure_uid_ama7fu="165">कुछ तो फर्क है मनुष्य तुझमें और बाज़ में</span></div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">तू क्यूँ अंतर समझा नहीं सकता कल और आज में </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><br />
</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">तेरा अदि अंत के दलदल में इतना क्यों धंस गया है</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">तू माया के इस जाल में क्यों जटिलता से फंस गया है</div></div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><br />
</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">तेरे कण कण से यही आवाज़ आती है मुझे</div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">इस नवयुग कि आंधी में खो गया जाने कहाँ मेरा कल गया है, </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;">आज मेरी नस नस का लहू समय कि चिंगारियों से जल गया है! </div><div closure_uid_ama7fu="113" style="text-align: left;"><br />
</div></div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-570274088003973952011-08-24T00:23:00.000-07:002011-08-24T00:23:35.715-07:00मैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मैं अनजानी सी राहों में , कुछ भूली भटकी राहों सी <br />
कुछ सहमी सहमी रातों सी, कुछ घबरायी सी बातों सी<br />
<div closure_uid_qc2l4f="159">हूँ तो मैं बहुत साधारण सी , फिर भी उलझे जज्बातों सी</div><div closure_uid_qc2l4f="154">कह दूं तो अथाह सागर हूँ, चुप रहूँ तो टूटती सासों सी</div><div closure_uid_qc2l4f="154">चुप रहूँ , तो टूटती सासों सी</div><div closure_uid_qc2l4f="158"><br />
</div></div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4591345051122368423.post-25556336002636061232011-08-04T04:45:00.000-07:002011-08-04T04:45:33.802-07:00अधूरे ख्वाब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मेरे हर एक सपने को जैसे किसी की नज़र लग जाती है,<br />
मैं उन्हें संजोती हूँ बार बार , पर आखिरकार मेरे हाथ में सिर्फ हार ही आती है!<br />
<br />
सपने बुनते बुनते मैं भूल जाती हूँ की वो सपने है,<br />
हकीकत तब जान पाती हूँ, जब कोई मेरे टूटे सपनो से खेलता है,<br />
जब उनके रंगो को मेरे मन के आंगन में बिखेरता है!<br />
<br />
मैं सिर्फ उन रंगो में अतीत की परछाइयां तलाश करती हूँ,<br />
अपने आप से ही अक्सर सवाल जवाब करती हूँ , कि क्यूँ'<br />
मैं एक सपना टूटने के बाद फिर से ख्वाब बुनती हूँ,<br />
जबकि मैं जानती हूँ कि ये ख्वाब भी शायद टूट जायेगा,<br />
और मुझे फिर से बहुत रुलाएगा, तड्पाएगा<br />
<br />
लेकिन अब मैं कोई ख्वाब नहीं देखना चाहती !<br />
फिर से बिखरे रंगो को नहीं बटोरना चाहती,<br />
नहीं देना चाहती किसी को अधिकार कि वो मेरे ख्वाबो से खेल सके,<br />
मुझे अतीत के अन्धकार में धकेल सके,<br />
जहाँ फिर से मैं अपने टूटे ख्वाबो के साथ अकेली हो जाऊं,<br />
जहाँ से मुझे आगे अँधेरा ही अँधेरा नज़र आये<br />
और मैं फिर से उन्ही अनजानी राहो में खो जाऊं!<br />
<br />
नहीं देखना चाहती मैं कोई ख्वाब , नहीं देखना चाहती...<br />
अधूरे ख्वाब </div>Kalpanahttp://www.blogger.com/profile/14083805132286329627noreply@blogger.com9