कुछ साकार करने की तमन्ना लिए जब जब भी वो राह ढूँढती है,
राह खो जाती है
उसकी जिंदगी में एक और नई अनहोनी हो जाती है
पर वो हताश नहीं होती निराश नहीं होती,
फिर ये कल्पना लड़खड़ाते कदमों पर खुद को उठाती है,
खुद ही खुद को हिम्मत देती है, एक नई राह खोजती है, अपनी जीत सोचती है
कई बार यूँ ही होता है,
कई बार राहें खो जाती है,
कई निराशाएं सामने आती है,
कल्पना को पल पल डरती है, सताती है,
पर कल्पना नहीं डरती, खुद ही खुद से लडती है,
कई लम्हा हकीक़त की शूली पर चढ़ती है,
कितनी ही दुविधाओं में पड़ती है, उसकी आत्मा रोती है, करहाती है,
पर कल्पना फिर भी एक नया सपना सजाती है,
नई आशा लिए,
उस सपने को पूरा करने की तमन्ना लिए,
भगवान् उसे बार बार सजा देता है,
उसकी नासमझियों का हिसाब लेता है,
पर वो दुखी होकर भी उसे ही सच्चा कहती है,
उसके हर फैसले को अच्छा कहती है,
एक बार फिर से वो सपना देख रही है,
कुछ समेट रही है,
ये सोचकर की अब तो नासमझियों का हिसाब पूरा हो गया होगा,
कांच पूरा का पूरा चूरा चूरा हो गया होगा
और उसी चूरे से कुछ दीवारें सपनो की फिर से बनाती है,
सपनो की एक नई कल्पना सजाती है,
फिर से वो नई कल्पना में खो जाती है, खाबों को सजाती है......
पर जाने कब इन्हें सच कर पाती है,
जाने कब ये कल्पना पूरी हो पाती है ........
जाने कब????
राह खो जाती है
उसकी जिंदगी में एक और नई अनहोनी हो जाती है
पर वो हताश नहीं होती निराश नहीं होती,
फिर ये कल्पना लड़खड़ाते कदमों पर खुद को उठाती है,
खुद ही खुद को हिम्मत देती है, एक नई राह खोजती है, अपनी जीत सोचती है
कई बार यूँ ही होता है,
कई बार राहें खो जाती है,
कई निराशाएं सामने आती है,
कल्पना को पल पल डरती है, सताती है,
पर कल्पना नहीं डरती, खुद ही खुद से लडती है,
कई लम्हा हकीक़त की शूली पर चढ़ती है,
कितनी ही दुविधाओं में पड़ती है, उसकी आत्मा रोती है, करहाती है,
पर कल्पना फिर भी एक नया सपना सजाती है,
नई आशा लिए,
उस सपने को पूरा करने की तमन्ना लिए,
भगवान् उसे बार बार सजा देता है,
उसकी नासमझियों का हिसाब लेता है,
पर वो दुखी होकर भी उसे ही सच्चा कहती है,
उसके हर फैसले को अच्छा कहती है,
एक बार फिर से वो सपना देख रही है,
कुछ समेट रही है,
ये सोचकर की अब तो नासमझियों का हिसाब पूरा हो गया होगा,
कांच पूरा का पूरा चूरा चूरा हो गया होगा
और उसी चूरे से कुछ दीवारें सपनो की फिर से बनाती है,
सपनो की एक नई कल्पना सजाती है,
फिर से वो नई कल्पना में खो जाती है, खाबों को सजाती है......
पर जाने कब इन्हें सच कर पाती है,
जाने कब ये कल्पना पूरी हो पाती है ........
जाने कब????
बहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
गहन अभिवयक्ति....
ReplyDeletebhaut hi khubsurat...
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