Tuesday, February 12, 2013

वर्तमान

शुब्ध है मन चुप सी धड़कन, आज जाने क्या हुआ है
सत्यता संसार की क्यों देख कर सब थम गया है
जग अचल हृदय विकल है, डोलती क्यों ये धरा है
हर छवि में जिंदगी में बस दिखावा लग रहा है
चित्त चंचल था कभी जो, आज गुमसुम खो गया है
आज जाने क्यों सभी कुछ, दिनतामय हो गया है
ना रही अब नारी सीता, राम रावण बन गया है
कृष्ण का अवतार लेकर कंस पांसा फेंकता है
हर कोई छल छंद करके बस तमाशा देखता है
मित्र बनकर आज मानव सीने में कटारें भेदता है!

 

1 comment:

  1. kalpana tu hamesha itna achha likhti hai...i love reading your poems and thoughts...they are deep, heart touching and just lovely...keep writing always

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