Saturday, April 8, 2017

अधूरा साथ ........

फिर से नई राह पर तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी हूँ।
इक रौशनी की तलाश में निकल पड़ी हूँ। 

नहीं जानती की ये खाब पूरा होगा कि नहीं, फिर भी 
एक धुआं गहराये हुए जल पढ़ी हूँ। 

तुमने तो कहा नहीं की वापस आओगे, मुझे अपनी दुनिया में ले जाओगे 
पर फिर भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ 
सांसे चल रही है, पर हर घडी 
मर रही हूँ। 
तुम्हारी तलाश कर रही हूँ। 

तुम्हारे सामने भविष्य अंगड़ाई लेता होगा,
पर मेरी पलके अतीत को ही निहार रही है 
जाने क्यों हर बार कल्पना तक़दीर से हार रही है। 

तुम आ जाओ कि सांसे तुम्हे पुकार रही है 
आ जाओ की सांसे जल रही है 
तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी है 
तुम्हारी तलाश में निकल पड़ी है.
तुम आ जाओ........  

ना जाने क्या

दिन वही रात वही, सिर्फ जिंदगी वो नहीं है।  
तक़दीर तो नहीं बदली हमने, कैसे बदल सकते थे 
तुम्हारे होते हुये।  
खुद को इतना बदल चुके थे तुम्हारे लिए 
की कुछ और बदलने की ताकत न जुटा पाए। 
केवल सोचते रह गए 
तक़दीर चली गई सामने से
और हम ठगे से खड़े रहे 
न जाने किस सोच में 
बह गए सरे खाब 
आंसुओ में नहीं,
समय के बहाव में 
इतनी तर गई है जिंदगी की अब बिछड़ गए है 
सारे खाब जिंदगी से 
तिनका ढूंढा जो हमने सहारे के लिए 
पाया तो नहीं-----
अपनी कश्ती भी गवां बैठे गैरो के लिए  

 

अधूरे खाब

सही और गलत से परे भी कुछ हिसाब होते है ,
जो पूरे होते नहीं कभी कुछ ऐसे भी खाब होते है!

खाब ऐसे जो किसी से कभी बाटें नहीं जाते,
खाब ऐसे जो टूटे तो समेटे भी नहीं जाते !

फिर भी परछाई के जैसे हर लम्हा साथ होते है,
होते है हर किसी के ही, कुछ ऐसे इंतखाब (selection) होते है !

जो पूरे होते नहीं कभी, कुछ ऐसे भी खाब होते है,
क्योंकि सही और गलत से परे भी कुछ हिसाब होते है,
जो पूरे होते नहीं कभी, कुछ ऐसे भी खाब होते है !