Saturday, April 8, 2017

अधूरा साथ ........

फिर से नई राह पर तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी हूँ।
इक रौशनी की तलाश में निकल पड़ी हूँ। 

नहीं जानती की ये खाब पूरा होगा कि नहीं, फिर भी 
एक धुआं गहराये हुए जल पढ़ी हूँ। 

तुमने तो कहा नहीं की वापस आओगे, मुझे अपनी दुनिया में ले जाओगे 
पर फिर भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ 
सांसे चल रही है, पर हर घडी 
मर रही हूँ। 
तुम्हारी तलाश कर रही हूँ। 

तुम्हारे सामने भविष्य अंगड़ाई लेता होगा,
पर मेरी पलके अतीत को ही निहार रही है 
जाने क्यों हर बार कल्पना तक़दीर से हार रही है। 

तुम आ जाओ कि सांसे तुम्हे पुकार रही है 
आ जाओ की सांसे जल रही है 
तुम्हारा अधूरा साथ लिए चल पड़ी है 
तुम्हारी तलाश में निकल पड़ी है.
तुम आ जाओ........  

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