दिन वही रात वही, सिर्फ जिंदगी वो नहीं है।
तक़दीर तो नहीं बदली हमने, कैसे बदल सकते थे
तुम्हारे होते हुये।
खुद को इतना बदल चुके थे तुम्हारे लिए
की कुछ और बदलने की ताकत न जुटा पाए।
केवल सोचते रह गए
तक़दीर चली गई सामने से
और हम ठगे से खड़े रहे
न जाने किस सोच में
बह गए सरे खाब
आंसुओ में नहीं,
समय के बहाव में
इतनी तर गई है जिंदगी की अब बिछड़ गए है
सारे खाब जिंदगी से
तिनका ढूंढा जो हमने सहारे के लिए
पाया तो नहीं-----
अपनी कश्ती भी गवां बैठे गैरो के लिए
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